
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक बयान ने भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक हलचल बढ़ा दी है। ट्रम्प ने 15 अक्टूबर 2025 को एक जनसभा के दौरान दावा किया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि भारत जल्द ही रूस से तेल खरीदना बंद करेगा, ताकि रूस पर यूक्रेन युद्ध को लेकर दबाव बढ़ाया जा सके।
लेकिन अगले ही दिन, 16 अक्टूबर को भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने ट्रम्प के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया। मंत्रालय ने कहा कि भारत की ऊर्जा नीति किसी विदेशी दबाव पर नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और उपभोक्ताओं की जरूरतों पर आधारित है।
विदेश मंत्रालय का बयान
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने मीडिया से कहा कि भारत अपनी ऊर्जा नीति पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश का लक्ष्य सस्ती, स्थिर और सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
जायसवाल ने कहा,
"भारत दुनिया के कई देशों से ऊर्जा खरीदता है, और रूस से तेल आयात करना हमारी विविधता नीति का हिस्सा है। हमारा रुख साफ है कि ऊर्जा की खरीद हमारे उपभोक्ता और आर्थिक हितों के अनुसार होगी, न कि किसी बाहरी दबाव में।"
उन्होंने यह भी बताया कि रूस से तेल आयात को लेकर किसी भी तरह की नीति बदलाव की बात पूरी तरह गलत है।
रूस से तेल खरीद की मौजूदा स्थिति
भारत वर्तमान में अपने कुल कच्चे तेल आयात का करीब 34 प्रतिशत रूस से खरीदता है। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, जिसके कारण रूस ने भारत को भारी छूट पर तेल बेचना शुरू किया।
इससे भारत को बड़ा फायदा हुआ, क्योंकि सस्ती दरों पर खरीदे गए रूसी तेल से न केवल ईंधन की कीमतें नियंत्रित रहीं बल्कि सरकार को भी राजस्व बढ़ाने में मदद मिली।
ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार, रूस भारत के लिए एक भरोसेमंद सप्लायर बना हुआ है और आने वाले समय में यह साझेदारी और भी मजबूत हो सकती है।
अमेरिका की चिंता
ट्रम्प के इस बयान ने अमेरिका में भी हलचल मचा दी है। कई अमेरिकी विश्लेषक मानते हैं कि ट्रम्प भारत पर दबाव बनाना चाहते हैं ताकि रूस की अर्थव्यवस्था पर असर पड़े।
हालांकि भारत ने हमेशा से यह कहा है कि वह राजनयिक संतुलन बनाए रखना चाहता है। भारत ने यूक्रेन युद्ध पर अब तक किसी भी पक्ष का खुला समर्थन नहीं किया है, बल्कि लगातार शांतिपूर्ण समाधान की अपील करता रहा है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक डेविड हेनरी के अनुसार, “भारत रूस और अमेरिका दोनों का करीबी साझेदार है। मोदी सरकार जानती है कि किसी एक पक्ष के पक्ष में झुकाव दिखाने से उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
भारत में विपक्षी दलों ने इस बयान पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि भारत को किसी भी विदेशी दबाव में आकर अपनी ऊर्जा नीति नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने कहा, “देश की नीति केवल भारत के लोगों के हित में होनी चाहिए, न कि किसी विदेशी नेता के कहने पर।”
वहीं भाजपा नेताओं ने ट्रम्प के बयान को राजनीतिक बयानबाजी बताया। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा भारत के हितों को सर्वोपरि रखते हैं और किसी भी देश को भारत की नीति तय करने का अधिकार नहीं है।
विशेषज्ञों की राय
ऊर्जा विश्लेषक डॉ. स्वाति मेनन का मानना है कि भारत के लिए रूस से तेल खरीद जारी रखना पूरी तरह तार्किक है। उन्होंने कहा कि भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए रूस जैसे भरोसेमंद सप्लायर को छोड़ना अभी संभव नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि भारत तेल आयात में अचानक बदलाव करता है तो इसका सीधा असर देश की महंगाई और पेट्रोल-डीजल कीमतों पर पड़ेगा, जो सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
अमेरिका-भारत संबंधों पर असर
हालांकि इस विवाद से दोनों देशों के रिश्तों पर तत्काल कोई बड़ा असर नहीं दिख रहा, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ऊर्जा राजनीति आने वाले महीनों में भारत-अमेरिका वार्ताओं का अहम विषय बनी रहेगी।
ट्रम्प प्रशासन पहले भी भारत से रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन करने की अपील कर चुका है, लेकिन भारत का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
कूटनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, दोनों देश एक-दूसरे के लिए रणनीतिक रूप से जरूरी हैं। भारत अमेरिका का महत्वपूर्ण रक्षा और टेक्नोलॉजी साझेदार है, जबकि अमेरिका भारत को एशिया में संतुलन का केंद्र मानता है।
इसलिए यह विवाद लंबी अवधि में शायद कोई बड़ा नुकसान नहीं करेगा, लेकिन यह याद जरूर दिलाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर अपने फैसले खुद लेता है।
निष्कर्ष
ट्रम्प के इस बयान ने भारत की ऊर्जा नीति और उसकी स्वतंत्रता पर फिर से ध्यान खींचा है। भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता अपने नागरिकों के हित और आर्थिक स्थिरता है।
जैसे-जैसे दुनिया ऊर्जा संकट और भू-राजनीतिक तनावों से गुजर रही है, भारत का यह रुख उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की ताकत को दर्शाता है।
अभी के लिए यह स्पष्ट है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा, और उसकी ऊर्जा रणनीति आने वाले वर्षों में देश की आर्थिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।