
🇮🇳 शिक्षक दिवस 2025 — क्यों दुनिया और भारत की तारीखें हैं अलग?
हर साल अक्टूबर की शुरुआत में सोशल मीडिया पर एक सवाल बार-बार ट्रेंड करता है — “Why is World Teachers’ Day celebrated on 5 October when India celebrates on 5 September?”
दरअसल, जवाब इतना दिलचस्प है कि इसमें इतिहास, संस्कृति और विचारों की एक गहरी कहानी छिपी है।
जहाँ पूरी दुनिया 5 अक्टूबर को World Teachers’ Day के रूप में मनाती है, वहीं भारत में यह दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है। दोनों का मकसद एक ही है — शिक्षकों का सम्मान, लेकिन दोनों की जड़ें और प्रेरणाएँ अलग हैं।
5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस की शुरुआत कैसे हुई
World Teachers’ Day की शुरुआत UNESCO और ILO (International Labour Organization) ने 1994 में की थी।
इस दिन को चुना गया था 1966 के उस ऐतिहासिक “Recommendation concerning the Status of Teachers” की याद में, जो शिक्षकों के अधिकारों और उनकी स्थिति सुधारने के लिए अपनाई गई थी।
UNESCO ने इस दिन को वैश्विक स्तर पर शिक्षकों की भूमिका, उनके अधिकारों, प्रशिक्षण और समाज में योगदान को मान्यता देने के लिए समर्पित किया।
हर साल एक नया थीम चुना जाता है — 2025 के लिए माना जा रहा है कि थीम “Empowering Educators for the Future Generation” रहेगा, यानी भविष्य की पीढ़ी को आकार देने वाले शिक्षकों को सशक्त बनाना।
UNESCO के डायरेक्टर जनरल के शब्दों में, “A great teacher is not just a source of knowledge, but a source of transformation.”
यह वाक्य बताता है कि शिक्षकों की भूमिका सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को बदलने की ताकत रखती है।
🇮🇳 भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है
भारत में शिक्षक दिवस की कहानी जुड़ी है देश के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से।
जब उनके कुछ छात्रों ने जन्मदिन (5 सितंबर) को सेलिब्रेट करने की बात कही, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा —
“अगर आप सच में मेरा सम्मान करना चाहते हैं, तो इस दिन को Teachers’ Day के रूप में मनाइए।”
बस, तभी से 1962 से लेकर आज तक, भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन सिर्फ एक नेता या शिक्षक को समर्पित नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति को सम्मान देने का प्रतीक है जो किसी को ज्ञान देता है — चाहे वह स्कूल का गुरु हो, कॉलेज का प्रोफेसर या जीवन का कोई सच्चा मार्गदर्शक।
दिलचस्प बात यह है कि भारत में यह दिन भावनात्मक ज्यादा है, जबकि विश्व स्तर पर यह संस्थागत और नीतिगत मायनों में देखा जाता है।
शिक्षक दिवस का असली उद्देश्य क्या है
कई लोग सोचते हैं कि यह दिन सिर्फ “thank you” बोलने या फूल देने का मौका है, लेकिन इसका मतलब कहीं गहरा है।
इस दिन का उद्देश्य है —
- शिक्षकों के योगदान को समाज में पहचान दिलाना
- शिक्षा प्रणाली में सुधार और समान अवसरों की वकालत करना
- और यह याद दिलाना कि बिना अच्छे शिक्षक, कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता
आज के दौर में जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल लर्निंग का युग है, तब भी “a human teacher” की जगह कोई मशीन नहीं ले सकती।
क्योंकि शिक्षक सिर्फ जानकारी नहीं देते, मूल्य (values) सिखाते हैं — और यही फर्क है “teaching” और “guiding” में।
आधुनिक दौर में शिक्षकों की बदलती भूमिका
आज का शिक्षक सिर्फ ब्लैकबोर्ड तक सीमित नहीं है। वह एक mentor, guide, motivator और counselor बन चुका है।
कोविड-19 के समय ऑनलाइन क्लासेज़ से लेकर अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर पढ़ाने तक, शिक्षकों ने खुद को बदलकर दिखाया है।
दिल्ली की एक सरकारी स्कूल टीचर मीनाक्षी शर्मा कहती हैं,
“आज के बच्चे सवाल पूछते हैं, चुनौती देते हैं, और यही असली शिक्षा है — जहाँ जिज्ञासा खत्म होती है, वहाँ सीखना भी रुक जाता है।”
इस दृष्टि से देखा जाए तो शिक्षक दिवस सिर्फ एक “celebration” नहीं, बल्कि education culture को पुनर्जीवित करने का दिन है।
निष्कर्ष — तारीखें अलग, भावना एक
चाहे भारत में 5 सितंबर हो या विश्व में 5 अक्टूबर — भावना एक ही है:
“शिक्षक वो दीपक हैं, जो खुद जलकर भी दूसरों को रौशनी देते हैं।”
आज जब शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि values, skills और innovation की दिशा में बढ़ रही है, तब शिक्षक दिवस की अहमियत और भी बढ़ जाती है।
इसलिए यह दिन सिर्फ “धन्यवाद” कहने के लिए नहीं, बल्कि यह सोचने का दिन है कि क्या हम अपने शिक्षकों की उस मेहनत का सच्चा सम्मान कर पा रहे हैं?
🧭 अंतिम विचार:
शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि किसी भी सभ्यता की असली ताकत उसके हथियार या तकनीक नहीं, बल्कि उसके teachers होते हैं।
क्योंकि वही नई पीढ़ी को दिशा देते हैं — और दिशा ही किसी राष्ट्र का भविष्य तय करती है।