
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को करूर भगदड़ त्रासदी की स्वतंत्र जांच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। यह वही घटना है जिसने पूरे तमिलनाडु को झकझोर दिया था, जब जोसेफ विजय की पार्टी तमिलगा वेट्ट्री कझगम (TVK) की एक राजनीतिक रैली के दौरान भगदड़ मच गई थी। इस हादसे में 41 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
यह मामला अब केवल एक राजनीतिक घटना नहीं रहा, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और जवाबदेही का सवाल बन गया है। अदालत में पीड़ित परिवार और TVK पार्टी दोनों ने मिलकर याचिका दाखिल की थी कि राज्य सरकार की जांच निष्पक्ष नहीं है, इसलिए एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाई जाए।
अदालत ने उठाए कई सख्त सवाल
सुनवाई के दौरान जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस एन. वी. अंजनिया की पीठ ने तमिलनाडु सरकार से कई गंभीर सवाल पूछे। अदालत ने जानना चाहा कि इतनी बड़ी रैली को आखिर अनुमति कैसे दी गई, जब भीड़ का अंदाज़ा पहले से लगाया जा सकता था।
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, “प्रशासन को भीड़ के आकार का अंदाज़ा था, फिर भी एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए गए? पुलिस, स्वास्थ्य और जिला प्रशासन के बीच समन्वय कहां था?”
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह भीड़ नियंत्रण, सुरक्षा व्यवस्था और इमरजेंसी रिस्पॉन्स पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करे।
आधी रात को पोस्टमॉर्टम और फॉरेंसिक जांच पर भी सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने करूर सरकारी अस्पताल में आधी रात को हुए पोस्टमॉर्टम पर भी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने कहा कि ऐसी संवेदनशील घटनाओं में फॉरेंसिक साक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन यहां सीमित संसाधनों और जल्दबाज़ी में कई प्रक्रियाएं गड़बड़ा गईं।
अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह अपनी फॉरेंसिक क्षमता, विशेषज्ञों की संख्या और उपकरणों की स्थिति पर भी रिपोर्ट दे, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में पारदर्शिता बनी रहे।
हाईकोर्ट के SIT आदेश पर TVK की आपत्ति
इस मामले में जोसेफ विजय की पार्टी TVK ने मद्रास हाईकोर्ट द्वारा गठित SIT जांच पर भी आपत्ति जताई है। पार्टी का कहना है कि राज्य पुलिस की टीम राजनीतिक दबाव में काम कर रही है और इसलिए एक स्वतंत्र या केंद्रीय एजेंसी से जांच होनी चाहिए।
TVK के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया कि “जब राज्य खुद इस घटना में पक्षकार है, तो उसकी एजेंसियां कैसे निष्पक्ष जांच कर सकती हैं?”
क्या लापरवाही से हुई थी त्रासदी?
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस दिन रैली स्थल पर अनुमति से ज्यादा भीड़ इकट्ठा हो गई थी। बैरिकेडिंग कमजोर थी और निकासी मार्ग सीमित, जिससे अचानक अफरातफरी मच गई। जैसे ही मंच की तरफ बढ़ने की कोशिश हुई, लोग एक-दूसरे के ऊपर गिर पड़े।
एक चश्मदीद ने बताया, “हम खुश होकर आए थे लेकिन कुछ मिनटों में सब कुछ बदल गया। किसी को सांस लेने तक की जगह नहीं थी।”
अदालत का रुख और आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह मामला केवल प्रशासनिक गलती का नहीं बल्कि सिस्टम की जवाबदेही का परीक्षण है। कोर्ट ने यह भी कहा कि “ऐसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि भीड़ प्रबंधन कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन-मृत्यु का सवाल है।”
अब अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, यानी अगली सुनवाई में निर्णय सुनाया जाएगा। तमिलनाडु सरकार को तब तक सभी रिपोर्ट्स और दस्तावेज़ पेश करने होंगे।
लोगों की उम्मीद और पीड़ित परिवारों का दर्द
करूर में आज भी पीड़ित परिवारों के घरों में सन्नाटा है। कई परिवारों को अब भी मुआवज़े की पूरी राशि नहीं मिली है। एक पीड़ित की बहन ने कहा, “हमारे भाई की मौत हो गई, पर अब तक किसी अधिकारी ने जवाब नहीं दिया। हमें सिर्फ इंसाफ चाहिए।”
लोगों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में न्याय और पारदर्शिता दोनों सुनिश्चित करेगा।
निष्कर्ष
करूर हादसा तमिलनाडु के लिए सिर्फ एक राजनीतिक गलती नहीं, बल्कि एक सबक बन चुका है। अदालत का फैसला अब यह तय करेगा कि क्या प्रशासन अपनी जवाबदेही निभा पाया या नहीं।
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट का अगला आदेश ही इस दर्दनाक घटना की सच्चाई और जिम्मेदारी का असली रास्ता दिखाएगा।