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भारत-अमेरिका के रिश्तों में नई गर्माहट: रक्षा, टेक्नोलॉजी और व्यापार पर बनी बड़ी सहमति

byaditya9h agoभारत
भारत-अमेरिका के रिश्तों में नई गर्माहट: रक्षा, टेक्नोलॉजी और व्यापार पर बनी बड़ी सहमति

नई दिल्ली एक बार फिर वैश्विक कूटनीति का केंद्र बना हुआ है। बीते हफ्ते भारत और अमेरिका के बीच हुई उच्च स्तरीय बैठकों ने इस रिश्ते में नई जान फूंक दी है। रक्षा सौदों से लेकर टेक्नोलॉजी सहयोग और व्यापारिक समझौतों तक—दोनों देशों ने कई अहम मुद्दों पर कदम बढ़ाए हैं। इन बैठकों का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि दुनिया फिलहाल बड़े बदलावों के दौर से गुजर रही है।

रक्षा सहयोग में तेजी

रक्षा मोर्चे पर भारत और अमेरिका की नज़दीकियां साफ नज़र आईं। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका ने भारत को उन्नत सैन्य तकनीक उपलब्ध कराने के साथ-साथ संयुक्त विकास की पेशकश की है। इसमें फाइटर जेट इंजन, ड्रोन और स्पेस-आधारित निगरानी प्रणालियों पर बातचीत हुई।

एक भारतीय रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, “भारत लंबे समय तक रूस पर निर्भर रहा है, लेकिन मौजूदा हालात ने यह साफ कर दिया है कि अब हमें विकल्पों को संतुलित करना होगा। अमेरिका के साथ यह साझेदारी उसी दिशा में एक ठोस कदम है।”

अमेरिका के लिए भी यह सहयोग सिर्फ हथियार बेचने तक सीमित नहीं है। वाशिंगटन चाहता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सैन्य क्षमता मजबूत हो ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती दी जा सके।

टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप पर फोकस

रक्षा के अलावा, टेक्नोलॉजी सहयोग भी इस बैठक का बड़ा एजेंडा रहा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, साइबर सिक्योरिटी और क्लीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों ने संयुक्त पहल पर चर्चा की।

एक अमेरिकी राजनयिक ने कहा, “आज की दुनिया में तकनीक ही सबसे बड़ा हथियार है। भारत के साथ हमारी साझेदारी भरोसेमंद सप्लाई चेन और सुरक्षित इकोसिस्टम बनाने के लिए है।”

भारत ने भी साफ किया कि वह चिप मैन्युफैक्चरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स में अमेरिका के निवेश को आकर्षित करना चाहता है। इसके अलावा, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे उभरते क्षेत्रों को भी एजेंडे में जगह मिली।

व्यापार वार्ता और राजनीतिक पहलू

व्यापार के मुद्दे पर भी बातचीत हुई। भारत ने अपने कृषि और वस्त्र निर्यात को अमेरिका में और आसान पहुंच दिलाने की मांग रखी, जबकि अमेरिका ने बौद्धिक संपदा अधिकार और डेटा सुरक्षा पर जोर दिया।

हालांकि कोई बड़ा समझौता घोषित नहीं हुआ, लेकिन दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि भरोसा और पारदर्शिता बढ़ाना ज़रूरी है।

दिल्ली के एक उद्योगपति ने कहा, “बात सिर्फ टैरिफ की नहीं है, बल्कि यह विश्वास बनाने की है ताकि कारोबार लंबे समय तक टिक सके।”

चुनावी मौसम को देखते हुए दोनों सरकारें घरेलू राजनीति को भी साधने की कोशिश कर रही हैं।

वैश्विक संदर्भ में रिश्तों की अहमियत

भारत-अमेरिका की ये नई पहल ऐसे समय में हो रही है जब रूस और चीन की नज़दीकियां बढ़ रही हैं। भारत के लिए यह स्थिति जटिल है क्योंकि अब भी उसके ज्यादातर हथियार रूस से आते हैं। ऐसे में अमेरिका के साथ बढ़ती भागीदारी को रणनीतिक संतुलन की कोशिश माना जा रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार अमेरिका का रुख पहले से ज़्यादा व्यावहारिक रहा। चीन का नाम सीधे तौर पर कम लिया गया, बल्कि आर्थिक विकास और इनोवेशन को साझा प्राथमिकता बताया गया।

भविष्य की राह

आने वाले महीनों में रक्षा अभ्यास, संयुक्त शोध परियोजनाएं और स्किल्ड वर्कर्स के लिए नए वीज़ा रास्ते खोले जा सकते हैं। हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। व्यापारिक विवाद, रेगुलेटरी रुकावटें और राजनीतिक संवेदनशीलताएं कभी भी गति धीमी कर सकती हैं।

फिर भी माहौल सकारात्मक है। जैसा कि एक विश्लेषक ने कहा, “यह सिर्फ एक बैठक या एक फोटो-ऑप की बात नहीं है। यह एक ऐसे रिश्ते की नींव है जो दुनिया की राजनीति के झंझावातों को झेल सके।”

निष्कर्ष

भारत और अमेरिका के बीच हालिया बातचीत यह दिखाती है कि रक्षा, टेक्नोलॉजी और व्यापार अब एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। भारत के लिए यह साझेदारी रणनीतिक बढ़त हासिल करने का मौका है, वहीं अमेरिका के लिए यह एशिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र को अपने साथ बनाए रखने की कवायद है।