
जयपुर (राजस्थान):
राजस्थान में एक और दर्दनाक हादसे ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। एक पाँच साल के मासूम की मौत खांसी की दवा पीने के बाद हो गई। परिवार ने सोचा था कि साधारण-सी खांसी दूर करने के लिए दवा मदद करेगी, लेकिन कुछ ही घंटों में बच्चा जिंदगी की जंग हार गया। इस घटना ने एक बार फिर दवाओं की सुरक्षा और खुलेआम बिक रही सिरप पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
परिवार पर टूटा दुख का पहाड़
बच्चे के पिता ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हमें कभी उम्मीद नहीं थी कि एक आम खांसी की दवा जान ले लेगी। हमने दवा नज़दीकी मेडिकल स्टोर से ली थी। डॉक्टर को दिखाने का समय नहीं मिल पाया। अब पछताने के अलावा हमारे पास कुछ नहीं बचा।”
गांव के लोग बड़ी संख्या में परिवार के घर पहुंचे और आक्रोश जताया। कई लोगों ने कहा कि मेडिकल स्टोर्स पर बिना पर्ची के बच्चों को दवा बेचना बंद होना चाहिए।
अस्पताल में अफरा-तफरी
जानकारी के अनुसार, दवा लेने के कुछ ही घंटों बाद बच्चे को उल्टियां होने लगीं और सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ गई। परिजन तुरंत उसे ज़िला अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों का कहना है कि मामले की गहन जांच ज़रूरी है। “पिछले कुछ समय में कई ऐसे केस आए हैं, जिनमें बच्चों को सिरप पीने के बाद गंभीर दिक्कतें हुईं। यह डोज़िंग की गड़बड़ी हो सकती है, या दवा में मिलावट। बच्चों के लिए हर दवा सुरक्षित नहीं होती,” एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।
स्वास्थ्य विभाग की जांच शुरू
घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग हरकत में आ गया है। दवा का सैंपल जब्त कर प्रयोगशाला में भेजा गया है। अधिकारियों ने कहा है कि जब तक रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक उसी बैच की दवा की बिक्री रोक दी गई है।
जिला कलेक्टर ने भी मामले को गंभीरता से लिया और टीम गठित कर जांच के आदेश दिए। अगर दवा में गड़बड़ी साबित होती है तो निर्माता कंपनी और विक्रेता पर कड़ी कार्रवाई होगी।
लगातार सामने आ रहे मामले
यह पहला मौका नहीं है जब खांसी की दवा पर सवाल उठे हों। बीते कुछ सालों में अफ्रीका और एशिया के कई देशों में भारतीय सिरप को लेकर विवाद हुआ था। वहां दर्जनों बच्चों की मौत के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की दवाओं की निगरानी पर सवाल उठे।
भारत दुनिया का “फार्मेसी हब” माना जाता है, लेकिन घरेलू स्तर पर निगरानी की कमी अक्सर घातक साबित हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि गुणवत्ता जांच और वितरण चेन को और मज़बूत किए बिना ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आती रहेंगी।
राजनीति भी गरमाई
घटना के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है। एक स्थानीय विधायक ने ट्वीट किया, “अगर साधारण दवा भी बच्चों के लिए ज़हर बन रही है तो यह सरकार की विफलता है। निगरानी व्यवस्था पूरी तरह ढह चुकी है।”
वहीं, सत्तारूढ़ दल ने कहा कि जांच निष्पक्ष होगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
आत्मचिंतन का समय
विशेषज्ञों का मानना है कि असली समस्या सिर्फ दवा की गुणवत्ता नहीं, बल्कि ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में स्व-चिकित्सा (self-medication) की आदत भी है। लोग छोटे-मोटे लक्षण पर डॉक्टर से परामर्श लेने की बजाय सीधे मेडिकल स्टोर से दवा खरीद लेते हैं। कई बार दुकानदार भी बिना किसी डिग्री या अनुभव के बच्चों को दवा पकड़ा देते हैं।
जयपुर की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋतु शर्मा कहती हैं, “खुद से दवा लेने की आदत धीरे-धीरे जानलेवा बन रही है। माता-पिता को समझना होगा कि हर सिरप बच्चे के लिए सुरक्षित नहीं होता। यह घटना चेतावनी है कि अब बदलाव ज़रूरी है।”
आगे का रास्ता
स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार और दवा कंपनियां मिलकर सख्ती नहीं दिखातीं तो आने वाले समय में और मासूम इस लापरवाही की भेंट चढ़ सकते हैं।
फिलहाल जांच जारी है, लेकिन गांव में सन्नाटा पसरा है। परिवार अपने बच्चे की तस्वीरों को देख कर रो रहा है और एक ही सवाल गूंज रहा है — “अगर साधारण दवा जान ले सकती है तो आम आदमी किस पर भरोसा करे?”