
अनुशासन और एकजुटता का अद्भुत नजारा
नागपुर का रेशीमबाग मैदान इस बार विजयादशमी पर इतिहास रचता दिखा। 2 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने शताब्दी वर्ष का शुभारंभ किया। करीब 21,000 स्वयंसेवक परंपरागत गणवेश में मैदान में मौजूद थे। हर पंक्ति अनुशासन का प्रतीक, हर कदम सेवा का संदेश। भगवा ध्वज लहराता रहा और वातावरण "भारत माता की जय" के नारों से गूंज उठा।
मोहन भागवत का संदेश: पाँच बड़े बदलावों की ओर
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कार्यक्रम में समाज को पाँच क्षेत्रों में बदलाव का संकल्प दिलाया। उन्होंने कहा,
"अगर परिवार जागेगा तो समाज भी मजबूत होगा। आत्मनिर्भर भारत केवल नारे से नहीं, बल्कि हर घर के प्रयास से बनेगा। हमें शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक समरसता को नई दिशा देनी है।"
भागवत ने आगे कहा कि संघ का सौ साल का सफर केवल शुरुआत है, आने वाली सदी भारत को दुनिया का मार्गदर्शक बनाने की ओर बढ़ेगी।
कोविंद और मोदी की सराहना
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संघ को समर्पण और सेवा की मिसाल बताया। उनके शब्दों में, "आरएसएस ने हमेशा संकट की घड़ी में धर्म, जाति और राजनीति से ऊपर उठकर सेवा को प्राथमिकता दी।"
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेख के माध्यम से संघ की कार्यशैली को याद करते हुए कहा, "1947 के विभाजन से लेकर 2020 की महामारी तक, हर चुनौती में संघ के स्वयंसेवक चुपचाप सेवा में लगे रहे। यही इसकी असली ताकत है।"
100 साल का सफर: नागपुर से राष्ट्र तक
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर से संघ की नींव रखी थी। उस समय लक्ष्य स्पष्ट था—एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना जो अनुशासन और त्याग से राष्ट्रनिर्माण में जुटे। आज 100 साल बाद संघ केवल संगठन नहीं, बल्कि करोड़ों swayamsevaks की जीवनशैली बन चुका है।
इन सौ वर्षों में संघ ने हर आपदा, हर सामाजिक संघर्ष और हर जरूरत के वक्त अपनी छाप छोड़ी। चाहे बाढ़ और भूकंप हो या शिक्षा और संस्कार का अभियान, स्वयंसेवकों की उपस्थिति हमेशा महसूस हुई है।
जनता की नजर से
कार्यक्रम में आए एक 70 वर्षीय swayamsevak ने भावुक होकर कहा, "मैंने किशोरावस्था में शाखा जॉइन की थी, आज जब 100 साल पूरे होते देख रहा हूं तो लगता है मेरी जिंदगी सार्थक हो गई।"
वहीं युवा पीढ़ी के लिए यह अवसर प्रेरणा का स्रोत था। एक कॉलेज छात्र ने कहा, "यह केवल संगठन नहीं, यह जीवन जीने का तरीका है।"
शताब्दी वर्ष की दिशा
संघ ने साफ कर दिया है कि शताब्दी वर्ष केवल जश्न नहीं, बल्कि भविष्य की योजना भी है। परिवार आधारित जागरण, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण और आर्थिक आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी जाएगी।
निष्कर्ष
नागपुर का यह विजयादशमी कार्यक्रम केवल आरएसएस का उत्सव नहीं था, बल्कि यह भारत के बदलते चेहरे का भी प्रतीक था। अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति का यह संदेश आने वाले वर्षों में किस तरह समाज को दिशा देगा, यह देखना रोचक होगा।